उसके संघर्ष, उसके सपने, और उसकी अदम्य शक्ति को पुनः पहचानने का प्रयास। समय की धारा के साथ बहते हुए, हमने देखा है कि जिस समाज में कभी नारी को पूजनीय और दिव्य माना जाता था, वही समाज अब उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न खड़े करता है। उसके पंखों को काट कर उसे पिंजरों में बंद कर दिया गया, उसकी स्वतंत्रता छीन ली गई, और उसकी आत्मा को चोट पहुंचाई गई। यह काव्य संग्रह * “पंख उड़ान के” उन्हीं कटे हुए पंखों को फिर से विस्तार देने का प्रयास है, नारी की शक्ति और उसकी आत्मनिर्भरता को पुनः सम्मानित करने का एक संकल्प है। नारी, जिसे हमने कभी देवी स्वरूप में सरस्वती, अन्नपूर्णा, मोहिनी और उर्वशी के रूप में पूजा, अब वही नारी समाज की क्रूरता, भ्रूण हत्या, और अत्याचार का शिकार बन चुकी है। परन्तु यह काव्य संग्रह उस नारी को समर्पित है, जो काली का रूप लेकर अपने अधिकारों के लिए लड़ेगी, अपने सम्मान को पुनः प्राप्त करेगी, और अपने कटे हुए पंखों से फिर से आसमान को छुएगी “पंख उड़ान के” न केवल नारी की पीड़ा को अभिव्यक्त करता है, बल्कि उसकी अनगिनत संभावनाओं, उसके अद्वितीय साहस, और उसके स्वाभिमान को सलाम करता है ।